Decorum and discipline is the heart and soul of democracy; legislators must set high standards through their conduct – Vice President
Rajasthan Legislative Assembly felicitates the Vice President, Shri Jagdeep Dhankhar.
Rajasthan Chief Minister hosts dinner in honour of the Vice President.
The Vice President, Shri Jagdeep Dhankhar today stressed that decorum and discipline is the heart and soul of democracy and urged the elected representatives to set high standards through their words and conduct.
Addressing the Members of Rajasthan Legislative Assembly during a felicitation ceremony organized in his honour in Jaipur today, Shri Dhankhar said that the reputation of people’s representatives and efficiency of parliamentary institutions is critical to flourishing of democracy. “Failure on these counts would adversely impact other public institutions as well,” he added.
Observing that historically, our legislative assemblies and the Parliament have largely functioned in a calm and composed way, the Vice President termed the present situation as alarming. He stressed the need for political parties to come on a common platform and resolve their differences through a consensual approach.
Highlighting that guidance to governance emanates from hallowed precincts legislature, he called for taking inspiration from quality debates of our constituent Assembly.
Referring to the principal of ‘Separation of Powers’, the Vice President underlined that none of the three organs of the ‘State’ can claim to be supreme as only the Constitution is supreme.
In his address, Shri Dhankhar thanked the Speaker and all Members of Rajasthan Legislative Assembly for their love and warmth.
Dr C P Joshi, Speaker of Rajasthan Legislative Assembly, Shri Ashok Gehlot, Chief Minister of Rajasthan, Shri Gulab Chand Katariya, Leader of Opposition, Shri Shanti Kumar Dhariwal, Rajasthan Minister of Parliamentary Affairs and members of Rajasthan Legislative Assembly were present.
Prior to this, the Vice President also Attended a felicitation ceremony organised in his honour by various social organisations from the state of Rajasthan.
In the evening, Shri Dhankhar attended a dinner hosted in his honour by the Chief Minister of Rajasthan, Shri Ashok Gehlot at his residence.
Following is the full text of speech –
विधान सभा के पवित्र परिसर में निमंत्रित होना मेरे लिए ऐक यादगार पल है।
मैं अभिभूत हूँ।
राज्य सभा के सभापति के रूप में और इस सदन के पूर्व सदस्य के रूप में, यह वास्तव में मेरे लिए हमेशा संजोए जाने वाला एक मूल्यवान क्षण है।
इस सम्मानित सदन के माध्यम से मैं राजस्थान के लोगों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं, जिनका मेरे दिल में हमेशा विशेष स्थान है और सदेव रहेगा।
आज इस सदा यादगार रखने वाले सम्मान के लिए माननीय अध्यक्ष डॉ. सी पी जोशी जी , सदन के नेता मुख्य मंत्री श्री अशोक गहलोत जी और प्रतिपक्ष नेता श्री गुलाब चंद कटारिया जी का आभार।
मैं पूर्ववर्ती वक्ताओं के दयालु शब्दों और उपस्थित माननीय सदस्यों द्वारा गर्मजोशी से स्वागत के लिए हार्दिक धन्यवाद।
संसद और विधायिका का कामकाज एक जीवंत और स्वस्थ लोकतंत्र की कुंजी है।
ये संस्थाए प्रामाणिक रूप से लोगों की इच्छा के साथ-साथ उनकी आकांक्षाओं का भी प्रतिनिधित्व करते हैं।
लोकतंत्र के इन मंदिरों में जन प्रतिनिधियों को महत्वपूर्ण संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करना आवश्यक है।
संसद और विधायिका सरकारों को प्रबुद्ध करने का सशक्त माध्यम है।
लोगों की आकांक्षाओं को साकार करने सार्थक और प्रभावी माध्यम है।
कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराना, पारदर्शिता और उत्तरदायित्व स्थापित करना इन संस्थाओं का मूल कर्तव्य है।
इससे प्रभावी और माध्यम हो नहीं सकता।
अनुशासन और स्वस्थ विचार मंथन लोकतंत्र जी आत्मा है।
विधानमंडलों और संसद में यह सब अधिक महत्वपूर्ण है।
विधानमंडलों और संसद में बहस, चर्चा और विचार-विमर्श ही लोकतंत्र का अमृत है।
लोकतंत्र की जननी और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों का आचरण अनुकरणीय होना संविधान निर्माताओं जी कल्पना और अपेक्षा थी।
यदि हम संविधान सभा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि देखें तो हमारे सामने शांत और व्यवस्थित तरीके से विचार मंथन का दृश्य उपस्थित होगा।
संविधान सभा में संविधान विकसित करते समय सबसे चुनौतीपूर्ण मुद्दों पर विभिन्न दृष्टिकोणों को एकजुटता और स्वस्थ वातावरण में देखा गया।
आज के हालात अत्यंत गम्भीर और चिंतनीय- सामयिक दृश्य- संसद और विधान सभाएँ किसी कुश्ती के अखाडे से कम नहीं हैं।
वर्तमान हालात लोकतंत्र के बारे में एक बहुत ही चिंतनीय संकेत है।
संसद और विधायिका में वर्तमान परिदृश्य चिंताजनक है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था को कड़ी चुनौती है।
गहरी चिंता का कारण।
अमर्यादित आचरण सभी सीमाएँ लांघ गया है।
जनता के बीच में हास्य का विषय बन गये है।
प्रजातांत्रिक व्यवस्था और मूल्यों पर इससे क्रूर और दर्दनाक कुठाराघात और क्या हो सकता है ?
समय आ गया है कि इस गम्भीर स्थिति पर हर स्तर पर व्यापक चिंतन मंथन हो।
इस गिरावट पर अंकुश लगना चाहिए।
हमारा दायित्व और भावना प्रजातंत्र को पनपना है न की इसे धंवस्थ करना।
विचित्र और भयावह दृश्य- जिनको संसद और विधान सभाओँ में चर्चा करनी चाहिए वो सड़क पर हैं।
संसद और विधान सभा स्वस्थ विचार आदान प्रदान का स्थान है।
जो दृश्य आज है वो इसका विपरीत है।
जनता और विशेषकर युवा सकती पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
जनता अचंभित है कि जिनको प्रजातांत्रिक वयस्था और मूल्यों का सर्जन करना है वो ही इनको ख़त्म करने में लगे है।
ऐक तरीक़े से पानी सर के ऊपर है।
प्रजातंत्र को बचाने के लिए अविलम्ब समाधान ही विकल्प है।
राजनीतिक दलों को एक साझा मंच पर आने और सर्वसम्मति के दृष्टिकोण से अपने मतभेदों को हल करने की अहम जरूरत है।
जैसा कि ऋग्वेद कहता है-
“हमारा उद्देश्य एक हो, हमारी भावनाएँ सुसंगत हो। हमारे विचार एकत्रित हो।
जैसे इस विश्व के, ब्रह्मांड के विभिन्न पहलुओं और क्रियाकलापों में तारतम्यता और एकता है”
लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए जनप्रतिनिधियों की प्रतिष्ठा और संसदीय संस्थाओं की दक्षता महत्वपूर्ण है।
इन मामलों में विफलता अन्य सार्वजनिक संस्थानों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।
शासन के लिए मार्गदर्शन पवित्र परिसर विधायिका से निकलता है।
आम जनता भी अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के आचरण और व्यवहार को उत्सुकता से देखती है और उनसे प्रेरणा लेती है।
सांसदों और विधायकों का आचरण सदनों के भीतर और बाहर हर दृष्टि से अनुकरणीय होना चाहिए।
एक आम धारणा बन रही है कि संसद और राज्य विधानमंडल में बहस की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है।
“विरोध करने का अधिकार’ ‘बाधा डालने का अधिकार’ के रूप विकसित हो रहा है।
हमारे सांसदों और विधान सभाओं के सदस्यों को हमारी संविधान सभा की गुणवत्तापूर्ण बहसों को ध्यान में रखना चाहिए।
राजनीतिक दलों को विधायिकाओं को सक्षम करने के लिए आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है।
सभी को यह याद रखना होगा कि ‘राज्य’ के तीनों अंगों में से कोई भी सर्वोच्च होने का दावा नहीं कर सकता क्योंकि केवल संविधान ही सर्वोच्च है।
मैं बड़ी आशा के साथ समाप्त करता हूं कि इस प्रतिष्ठित सदन के सदस्य अपने शब्दों और कार्यों के माध्यम से इस ‘लोकतंत्र के मंदिर’ की पवित्रता को बनाए रखेंगे। और संविधान निर्माताओं की भावना को जीवित रखें।
इस सम्मान के लिए एक बार फिर धन्यवाद।
जय हिन्द